Index Search for 'एतत्सर्वं' |
Shloka: | कथं चाग्निं जुहुयां पूजये वा कस्मिन्काले केन धर्मो न नश्येत् ।एतत्सर्वं सुभगे प्रब्रवीहि यथा लोकान्विरजाः संचरेयम् ॥ |
Reference: | 3.37.184.0.3(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>मार्कण्डेयसमस्यापर्व>चतुरशीत्यधिकशततमोऽध्यायः>श्लोक#3) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | मार्कण्डेयसमस्यापर्व |
Adhyaya: | चतुरशीत्यधिकशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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