Index Search for 'एकाहार्यं' |
Shloka: | एकाहार्यं जगत्सर्वं लोभमोहव्यवस्थितम् । अधर्मो वर्धति महान्न च धर्मः प्रवर्तते ॥ |
Reference: | 3.37.188.0.40(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>मार्कण्डेयसमस्यापर्व>अष्टाशीत्यधिकशततमोऽध्यायः>श्लोक#40) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | मार्कण्डेयसमस्यापर्व |
Adhyaya: | अष्टाशीत्यधिकशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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