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Sutra: | वार्योविद उवाच भिषक् पवनमतिबलमतिपरुषमतिशीघ्रकारिणमात्ययिकं चेन्नानुनिशम्येत् सहसा प्रकृपितमतिप्रयत: कथमग्रेऽभिरक्षितुमभिधास्यति प्रागेवैनमत्ययभयात् वायोर्यथार्था स्तुतिरपि भवत्यारोग्याय बलवर्णविवृद्धये वर्चस्वित्वायोपचयायज्ञानोपपत्तये परमायु: प्रकर्षाय चेति॥ |
Reference: | 1.11.14.0(सूत्रस्थान>तिस्त्रैषणीयाध्याय>सूत्र#14.0) |
Sthana: | सूत्रस्थान |
Adhyaya: | तिस्त्रैषणीयाध्याय |
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