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Sthana
 


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Index Search for        'घ्राणमतियोग:'
Sutra: त्रीणयायतनानीति--अर्थानां कर्मण: कालस्य चातियोगायोगमिथ्यायोगा: तत्रातिप्रभावतां दृश्यानामतिमात्रं दर्शनतियोग: सर्वशोऽदर्शनमयोग: अतिश्लिष्टातिविप्रकृष्टरौद्रभैरवाद्भुतद्विष्टबीभत्सनविकृतवित्रासनादिरुपदर्शनं मिथ्यायोग: तथाऽतिमात्रस्तनितपतहोत्क्रुष्टादीनां शब्दानामतिमात्रं श्रवणमतियोग: सर्वशोऽश्रवणमयोग: परुषेष्टविनाशोपघातप्रधर्षणभीषणादिशब्दश्रवणं मिथ्यायोग: तथाऽतितीक्ष्णोग्राभिष्यन्दिनां गन्धानामतिमात्रंघ्राणमतियोग: तथा रसानामत्यादानमतियोग: सर्वशोऽघ्राणमयोग: पूतिद्विष्टामेध्यक्लिन्नविषपवनकुणगन्धादिघ्राणं मथ्यायोग: तथा रसानामत्यादानमतियोग: सर्वसोऽनादानमयोग: मिथ्यायोगो राशिवर्ज्येष्वाहारविधिविशेषायतननेषूपदेक्ष्यते तथाऽतिशीतोष्णानां स्पृश्यानां स्न्नानाभ्यङ्गोत्सादनादीनां चात्युपसेवनमतियोग: सर्वशोऽनुपसेवनमयोग: स्न्नानादीनां शीतोष्णादीनां च स्पृश्यानामनानुपूर्व्योपसेवनं विषमस्नात्आ
Reference:1.10.37.0(सूत्रस्थान>महाचतुष्पादाध्याय>सूत्र#37.0)
Sthana:सूत्रस्थान
Adhyaya:महाचतुष्पादाध्याय
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